Thursday, December 31, 2009

नया वर्ष हमारे सभी साथियों के लिए मंगलमय हो !

नए वर्ष में न्यायपूर्ण उद्देश्यों की जीत हो!!

पूंजी की दासता और गुलामी का एक और वर्ष बीत गया ! आइये, नए वर्ष में न्याय की जीत हो और गुलामी का खात्मा हो, हम सभी इस बात की कामना और कोशिश करें !!

Friday, December 25, 2009

ये आंकड़े क्या कहते हैं ?


१) भारत के लगभग आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं!
२) दुनिया के कुल कुपोषित बच्चों में एक तिहाई संख्या भारतीय बच्चों की है।
३) देश में हर तीन सेकंड में एक बच्चे की मौत हो जाती है।
४) देश में प्रतिदिन लगभग 10,000 बच्चों की मौत होती है, इसमें लगभग 3000 मौतें कुपोषण के कारण होती हैं।
५) सिर्फ अतिसार के कारण ही प्रतिदिन 1000 बच्चें की मौत हो जाती है।
६) भारत के पाँच वर्ष से कम उम्र के 38 फीसदी बच्चों की लम्बाई सामान्य से बहुत कम है।
७) 15 फीसदी बच्चे अपनी लम्बाई के लिहाज से बहुत दुबले हैं।
८) 43 फीसदी (लगभग आधे) बच्चों का वजन सामान्य से बहुत कम है।
९) हर 1000 में से 57 बच्चे पैदा होते ही मर जाते हैं।
१०) भारत में प्रति वर्ष 74 लाख कम वजन वाले बच्चे पैदा होते हैं - जो कि दुनिया में सबसे अधिक है।
११) विश्व भर में 97 लाख बच्चे पाँच साल की उम्र पूरी करने से पहले ही मर जाते हैं, इनमें 21 लाख (यानी लगभग 21 प्रतिशत) बच्चे भारत के हैं।
१२) हर 4 में से 1 लड़की और हर 10 में से 1 लड़का प्राथमिक शिक्षा से वंचित है।
१३) गर्भ या प्रसव के दौरान आधी महिलाओं को उचित देख-भाल नहीं मिलती।
१४) देश की 50 प्रतिशत महिलाओं और 80 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है।
१५) देश का हर चौथा आदमी भूखे पेट रहता है। दुनिया भर में भूखे रहने वालों का एक तिहाई हिस्सा भारत में रहता है।
१६) पिछले 4-5 सालों में अधिकतर खाद्य पदार्थों की कीमतों में 50 से 100 प्रतिशत का इजाफा हो चुका है।
१७) 77 प्रतिशत भारतीय 20 रुपये रोज से कम पर गुजारा करते हैं।
१८) देश की केन्द्र सरकार अपने खर्च का महज 2 प्रतिशत स्वास्थ्य पर और 2 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है। इसकी तुलना में सुरक्षा पर 15 प्रतिशत खर्च किया जाता है।
१९) संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून के अनुसार दुनिया में अब लगभग 1 अरब से अधिक लोग भुखमरी का शिकार हैं।

क्या ऐसे समाज की कल्पना हमने की थी?

आइये अपने सपने की समाज व्यवस्था बनाने के लिए कुछ करें ........

Tuesday, December 15, 2009

२२ नवम्बर २००९ को "रूसी नवम्बर क्रांति का महत्व और उसके सबक" विषय
पर हुए कन्वेंशन के कुछ दृष्य

"दैनिक जागरण" (२३ नवम्बर २००९) में प्रकाशित ख़बर

हौल में बैठे हुए कामरेड और दूसरे संगठनों के अतिथि लोग

इफ्टू के कामरेड सुनील पाल बोलते हुए

Wednesday, December 9, 2009

लुधियाना के प्रवासी मजदूरों (ज्यादातर बिहार और उत्तरप्रदेश के) के न्यायपूर्ण आन्दोलन के पक्ष में पटना में साझा मार्च और नुक्कड़ सभा हुई

पटना में गत 8दिसम्बर 2009 के दिन जन अभियान के बैनर तले बिहार में कार्यरत दर्ज़न भर जनवादी, प्रगतिशील व क्रांतिकारी संगठनों के तरफ से एक साझा मार्च रेडियो स्टेशन से पटना स्टेशन गोलंबर तक निकाला गया। इसमे जन अभियान के घटक संगठनों के अलावे भाग लेने वाले व्यक्तियों में थे - सर्वहारा जन मोर्चा के अजय कुमार सिन्हा और श्रम मुक्ति संगठन के जय प्रकाश तथा पटना विश्व विद्यालय के अर्थ शास्त्र विभाग के प्रोफेसर श्री नवल किशोर चौधरी आदि भी शामिल थे। सभी वक्ताओं ने एक स्वर में लुधियान लुधियाना के प्रवासी मजदूरों (ज्यादातर बिहार और उत्तरप्रदेश के) के न्यायपूर्ण आन्दोलन के पक्ष में खड़े होने का आह्वान किया। यह बात भी जोर-शोर के साथ उठाई गई कि किसी को भी देश के किसी भी कोने में जाकर अपनी रोजी-रोटी का जुगाड़ करने का अधिकार है। यह भी कहा गया कि स्वयं पूंजीवादी व्यवस्था मजदूरों की बर्बादी और उनके पलायन के लिए जिम्मेवार है और उसी ने क्षेत्रवाद और का जहर भी फैला रखा है। पूंजीवादी गुर्गे और पार्टियां जानबूझ कर प्रवासी और गैर प्रवासी के बीच भेद पैदा कर के पूंजीपतियों के लिए सुअवसर पैदा करते हैं। सभी वक्ताओं ने लुधियाना के मजदूरों के साथ एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए पूंजीवादी और जुल्मी व्यवस्था को पलटने और एक नई शोषणमुक्त व्यवस्था बनाने का आह्वान किया।

Sunday, December 6, 2009

लगातार घोर शोषण और लूट को झेलते बिहार व उत्तर प्रदेश के मजदूरों का गुस्सा फूट पड़ा




पुलिस और मालिकों के गुंडों की खुली मिलीभगत






लगातार हो रहे घोर शोषण और लूट से त्रस्त लुधियाना में कार्यरत बिहारी व उत्तर प्रदेश के मजदूरों का रोषपूर्ण जुलुस और प्रदर्शन और उसके बाद वहशी पंजाब पुलिस के कारनामे के कुछ मर्मस्पर्शी दृश्य

ये फोटो बता रहे हैं कि पंजाब पुलिस, स्थानीय गुंडों और फैक्ट्री मालिकों के जरखरीद लम्पटों की खुली मिलीभगत है। मजदूरों के लिए जरूरी है कि वे इस बात से सबक लें और फौरी तौर पर अपने को वहां संगठित करें जहाँ वे श्रम अर्थात काम करते हैं। यह तो असंभव है कि अब से वे बाहर जायेंगे ही नहीं, कारण यह कि जब तक यह पूंजीवादी व्यवस्था है, तब तक न तो रोजी-रोटी के लिए उनका बाहर जाना बंद हो सकता है और न ही रोज-रोज उनका उजड़ना ही बंद हो सकता है। जहाँ तक नितीश कुमार का प्रश्न है, वे जरूर आने वाले बिहार चुनाव का ख्याल रखते हुए पंजाब में मजदूरों की पिटाई के खिलाफ बोल रहे हैं, परंतु वे स्वयं एक पूंजीवादी शासक ही हैं। क्या उनके बिहार में पुलिस मजदूरों के साथ घिनौना व्यवहार नहीं करती है? क्या नितीश कुमार की यानी बिहार की पुलिस आंदोलनरत मजदूरों व आम लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार नहीं करती है जैसा कि पंजाब पुलिस कर रही है ? पूंजीवादी व्यवस्था में पुलिस का यही रवैया हर जगह है। मजदूर-गरीब और मेहनतकश जनता को एकमात्र अपनी एकता और अपने संगठन की ताकत पर ही भरोसा करनी चाहिए। मजदूर वर्ग की एकता ही उनकी एकमात्र ताकत है।

Friday, December 4, 2009

दिल्ली में पानी और महंगा हुआ !

क्या यह सरकार और व्यवस्था कल हमसे हमारी हवा भी हमसे छीन लेगी ? हम सबको इस पर विचार करना ही होगा। विचार करना शुरू करना होगा, अभी ही और आज ही। पता नहीं, हवा कब छीन जाए!

देश के सभी राज्यों के गरीब व मेहनतकश लोगों एक हो !
गरीब और मेहनतकश लोग अपनी एकता के बल पर ही अपनी सुरक्षा कर पाएंगे और अपने हक़ अधिकार के लिए लड़ पाएंगे!!
पंजाब (लुधियाना) सहित अन्य जगहों पर बिहारी प्रवासी मजदूरों व कामगारों पर हो रहे जुल्म व अत्याचार के खिलाफ आवाज़ बुलंद करें
हम जानते हैं कि पूंजीवादी विकास असमान ढंग से ही हो सकता है। इसलिए पूंजीवादी व्यवस्था में देश के सभी क्षेत्रों का विकास एकसमान रूप से हो ही नहीं सकता है। यही कारण है कि आज पंजाब, मुंबई, दिल्ली आदि विकसित क्षेत्र बन गए हैं, तो बिहार, उत्तरप्रदेश आदि पिछड़े हुए रह गए हैं जहाँ के गरीब मजदूर लोग अपनी रोजी-रोटी कमाने के लिए विकसित क्षेत्रों में पलायन करने के लिए बाध्य होते हैं। इसके लिए अगर कोई दोषी है, तो वह पूंजीवादी व्यवस्था है जिसकी ख़ास तरह की उत्पादन पद्धति के कारण बिहार जैसे राज्यों को मजदूर-सप्लाई का प्रदेश बनना पड़ा है। अगर बिहार नहीं बनता तो किसी और राज्य को श्रम-सप्लाई वाला राज्य बनना पड़ता। इतना ही नहीं, सस्ते श्रम की प्रचुरता हो ताकि शोषण को ज्यादा से ज्यादा तीव्र किया जा सके इसके लिए जानबुझ कर "गरीब क्षेत्र'' रखे व बनाये जाते हैं। तभी तो जीवन-यापन से वंचित श्रमिकों की विशाल फौज खड़ी होगी जिनका पूंजी मनमाफिक ढंग से शोषण कर सकती है। पंजाब, लुधियाना, चंडीगढ़, फरीदाबाद, नोएडा जैसे नए औद्योगिक क्षेत्रों में आजकल इसी बात का खुलेआम नज़ारा देखने को मिल रहा है। मजदूरों को एक तरफ मनसे और राज ठाकरे जैसे गुर्गों के द्वारा क्षेत्र और राज्य के आधार पर बांटा जाता है तो दूसरी तरफ उनके विरोध को दबाने में यहाँ तक कि उनके आन्दोलन को रक्तरंजित कर देने के लिए शुरू से ही कोशिश शुरू हो जाती है।
कल जिस तरह लुधियाना में बिहार से आए मूलतः कृषि मजदूरों का गुस्सा फूटा और जिस वहशी अंदाज़ में पुलिस वालों और मिल मालिकों के गुंडों नें मजदूरों के साथ व्यवहार किया, वह सब इसी बात के प्रमाण हैं। जाहिर है, सभी न्याय पसंद लोगों को इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करनी चाहिए।