दिल्ली में पानी और महंगा हुआ !
क्या यह सरकार और व्यवस्था कल हमसे हमारी हवा भी हमसे छीन लेगी ? हम सबको इस पर विचार करना ही होगा। विचार करना शुरू करना होगा, अभी ही और आज ही। पता नहीं, हवा कब छीन जाए!
"जब सर्वहारा विजयी होता है, तो वह समाज का कदाचित निरपेक्ष पहलू नहीं बनता है, क्योंकि वह केवल अपना और अपने विरोधी का उन्मूलन करके ही विजयी होता है. तब सर्वहारा लुप्त हो जाता है और साथ ही उसके विरोधी का, स्वयं निजी सम्पति का भी, जो उसे जन्म देती है, लोप हो जाता है.."
yes it is true, but what is the way!!
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