Wednesday, August 12, 2009

वर्त्तमान जानलेवा महंगाई के खिलाफ आवाज उठाना होगा, इसे पैदा करने वाली व्यवस्था को समझना होगा.

आज इससे किसी को इनकार नहीं हो सकता है कि वर्त्तमान महंगाई से खासकर असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, मेहनतकश गरीब जनता और निम्न-मध्य वर्ग के लोगों की जिंदगियां लहूलुहान हो गई हैं। उस पर अतिअल्पवृष्टि के कारण देश में छाये सुखाड़जनित अकाल ने महंगाई से त्रस्त आम जनों की स्थिति को अत्यधिक रूप से भयावह बना दिया है। शोषण, लूट और भ्रस्टाचार की कमाई पर मौज मस्ती करने वाले लोगों और थैलीशाहों - नौकरशाहों आदि को भला महंगाई की मार का क्या पता होगा? असंगठित क्षेत्र के कामगारों और बेरोजगारों से जाकर कोई पूछे तो पता चलेगा कि उनकी तो पूरी जिंदगी ही लहूलुहान हो गई है। ऐसी स्थिति में इसके मूल कारणों पर विचार करना जरूरी है।
हम अगर गौर करें तो पाएंगे कि वर्त्तमान महंगाई का सीधा रिश्ता पूंजीवादी व्यवस्था और इसके तहत चलने वाली सरकारों की नवउदारवादी साम्राज्यपरस्त नीतियों से है। चाहे बीजेपीनीत सरकार हो या फिर कांग्रेसनीत सरकार हो सभी ने वैश्वीकरण, नवउदारीकरण व निजीकरण की नीतियों को आगे बढाया है। इसके फलस्वरूप पिछले दो दशकों के दौरान कृषि में निवेश लगातार घटा, कृषि में लगाने वाले सामानों (खाद, बीज, कीटनाशक आदि) पर से सब्सिडी हटता गया, बाज़ार की शक्तियों को मुक्त किया गया और बड़ी कंपनियों को कृषि में आमंत्रित किया गया। इसी के साथ विश्व व्यापार संगठन के प्राबधानों को मानते हुए सरकारी नीतियों को इस तरह बनाया गया जिससे कृषि उत्पादों के दामों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से जोड़ने का रास्ता प्रशस्त हुआ। देशी कृषि उत्पादों के दाम धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय दाम के साथ जुड़ते गए। इसके फलस्वरूप कृषि उत्पादों के दामों में जबर्दस्त उतार-चढाव आने लगा। इस तरह कृषि विश्व बाज़ार के संकटों से जुड़ती चली गई। इस परिदृश्य का सबसे खतरनाक पहलू यह बना कि कृषि से जुड़ी मेहनतकश आबादी की स्थिति बिगड़ने लगी और कृषि विकास दर गिरने लगा। यह परिदृश्य पिछले कई वर्षों से बना हुआ है। स्थिति ऐसी बना दी गई जिसमें कृषि में विविधिकरण सरकार का मुख्य मुद्दा बन गया। खाद्य सुरक्षा का प्रश्न गौण होता गया। सरकार शुरू से यह तर्क देने की कोशिश करती रही है कि विविधिकरण से किसान खुशहाल होंगे और यह कहा गया कि अनाज की कमी होने पर अनाज विदेशों से मांगा लिया जाएगा। हम जानते हैं कि पिछले वर्षों के दौरान विश्व बाज़ार में खाद्यानों के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई। इससे भारत में भी खाद्यानों के दामों पर असर पड़ा। आज जब महंगाई के कारण आबादी की एक बड़ी संख्या खाद्य असुरक्षा से पीड़ित है, सरकार जनता को झांसा देने के लिए खाद्य सुरक्षा कानून लाने की बात कर रही है लेकिन जिसके लिए कोई वित्तीय प्राबधान नहीं किया गया है। ज्ञातव्य हो कि अगर यह कानून लागू भी हो जाए, तब भी आबादी की एक छोटी संख्या ही इससे लाभान्वित होगी। वैसे हम सभी जानते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था में कानून लागू होने से ज्यादा आम अवाम को झांसा देने के काम ज्यादा आता है।

1 comment:

  1. आप की बात सही है लेकिन समस्या आज यह है कि राजनिति करने वालों में कोई भी ऐसी पार्टी नजर नही आती जो विश्वास करने योग्य हो कि वह आम जनता को इस महंगाई से छुटकारा दिला पाएगी।.....एसे मे एक बात तो साफ नजर आती है कि अब तक जो भी नीतियां बनाई गई वह कारगर साबित नही हुई।

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