Thursday, October 8, 2009


मराठी और गैर-मराठी मजदूर और मेहनतकश
महाराष्ट्रा के चुनावों में राज ठाकरे और उसकी पार्टी को सबक जरूर सिखायेंगे !!!!!

चुनावों आते ही राज ठाकरे की बेशर्मी और अवसरवादिता उजागर हो गई है। नाशिक में गैर मराठी मजदूरों और कामगारों की अच्छी-खासी संख्या है। उनका वोट लेने के लिए राज ठाकरे हर तरह के हथकंडे अपना रहा है। राज ठाकरे उन्हें अपना वोटर बता उन पर आज अपना प्यार बर्षा रहा है !!! नाशिक वही शहर है जहाँ राज ठाकरे के गुंडों ने बाहरी लोगों पर सबसे ज्यादा जुल्म ढाए थे। क्या हम यह भूल जायेंगे? हम कभी यह भी नही भूल पाएंगे कि किस तरह कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने इस पर चुप रहना बेहतर समझा था और राज ठाकरे का मन बढ़ाने का काम किया था।
राज ठाकरे की मनसे और उद्धव और बाल ठाकरे की शिवसेना मराठी मानुष की बात करती है। क्या वास्तव में ये लोग मराठी मानुष का भला चाहते हैं? सच तो यही है कि मनसे और शिवसेना दोनों पूंजीपतियों के लिए सस्ते श्रमिक मुहैय्या कराने वाले संगठन हैं। मुंबई में जब कपड़ा मिल बंद हो रहे थे और २४ लाख मजदूर नौकरी से बाहर हो गए थे तो इनमे से अधिकांश मराठी मजदूर ही थे। शिवसेना और मनसे तथा सम्पूर्ण ठाकरे परिवार ने तब मिल मालिकों को कारखाने बंद करने में पूरी सहायता की थी न कि मजदूरों का साथ दिया था। कौन भूलेगा कि तब ये लोग मजदूरों की हड़तालें तोड़ने का काम करते थे। कौन भूलेगा कि मजदूरों का साथ देने की तो बात ही दूर, इन लोगों ने बहादूर और लोकप्रिय मराठी मजदूर नेता कृष्णा देसाई और दत्ता सामंत को अपने गुंडों से हत्या करवा दिया था। ये लोग पूंजीपतियों के मन माफिक संगठित मराठी या बाहरी मजदूरों को हटवा कर सस्ते असंगठित मराठी और बंगलादेशी मजदूर रखवाते थे। इस तरह इन लोगों ने मालिकों के मुनाफे को खूब बढाया जिसका एक हिस्सा इन्हें भी मिला। इतना ही नही, जब जरूरत ख़त्म हो जाती तो फिर हिंदू-मुस्लिम और बाहरी-भीतरी का लफड़ा उठाकर ये लोग इन्हें भी मार भगा देते।
यही और ऐसा ही इनका सच्चा इतिहास है और मजदूर वर्ग को इस चुनाव में मनसे और शिवसेना को अवश्य ही सबक सिखाना चाहिए।


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नाम मराठी मानुष का, काम मजदूर मानुष के खिलाफ

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